जसमंत की नियुक्ति पर विधवा विलाप बेकार 

जसमंत की नियुक्ति पर विधवा विलाप बेकार 

भूपेंद्र शर्मा शिवपुरी

भाजपा शिवपुरी के नए जिलाध्यक्ष के रूप में जस मंत जाटव की घोषणा के बाद भीतर ही भीतर विधवा विलाप शुरू हो चुका है। हालांकि जसमंत जाटव को तीन दिन पहले ही फाइनल कर दिया गया था। और इसके पूछे एक मात्र कारण सिर्फ और सिर्फ स्थानीय सासंद और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीतिक पावर है।जो जस मंत को जिलाध्यक्ष बनाने के लिए लगी रही। अब दूसरी तरफ बात करें कि जसवंत जाटव बीजेपी के लिए नए हैं और संगठन चलाने के अनुभव नहीं हैं परन्तु स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं को अब इस बात की याद क्यों आ रही है। पूर्व जिलाध्यक्ष सुशील रघुवंशी से जिलाध्यक्ष का ताज छीनने वाले राजू बाथम की नियुक्ति के समय ही इस प्रथा का प्रचलन शिवपुरी में शुरू हो गया था। जीवन भर शासकीय कर्मचारी रहे राजू बाथम मंत्रियों के पी ए का काम देखते थे। सेवा से निवृत होते ही राजू बाथम को मछुआ कल्याण बोर्ड में राज्य मंत्री का दर्जा दे दिया गया और जब जब इस नियुक्ति का कार्यकाल समाप्त हुआ तो उन्हें सीधे भाजपा शिवपुरी का जिलाध्यक्ष बनाकर सबको हैरान कर दिया था। तब कहा जा रहा था कि अब भाजपा सरकारी कार्यालयों की तरह बाबू गिरी के पैमाने पर चलेगी। फिर राजू बाथम की कार्यकारिणी ने भी कई निष्ठावान भाजपा कार्यकर्ताओं को घर बिठाने का काम भी किया और नए नेताओं को महत्वपूर्ण पद देकर अपने पांच साल के कार्यकाल में सरकारी दफ्तरों में कार्यकर्ताओं को लुटते पिटते देखा मगर कभी खुलकर कार्यकर्ताओं की लड़ाई लड़ने सामने नहीं आए। चाहे रामस्वरूप रिझारी हों ,चाहे धैर्यवर्धन शर्मा हों या फिर अरविंद बेडर या पूर्व महामंत्री ओमी गुरु हों सबको लाइन में लगाने का काम राजू बाथम ने किया। भाजपा निष्ठ ऐसे सैंकड़ों नेता थे जो जिलाध्यक्ष के लिए सबसे अच्छे दावेदार थे मगर उन्हें कार्यकारिणी में तक जगह नहीं दी गई। तो जसवंत के बनने से भी किसी को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए जब एक बाबू को 5 साल सत्ता की मलाई के साथ कार्यकर्ताओं का शोषण करते हुए स्वीकार किया तो फिर जसवंत जाटव जैसे तेजतर्रार नेता में शुरुआत से पहले बुराई खोजना उनकी क्षमताओं को कम आंकने जैसा होगा। ये वही जसवंत जाटव हैं जिन्होंने अपने नेता के एक इशारे पर विधायकी को लात मार दी थी। और पूरी निष्ठा से भाजपा के हो गए । और तब से भाजपा के हर फैसले और आदेश का सम्मान करते आ रहे हैं। कांग्रेस से स्टीफा देने के बाद चुनाव लड़े मगर भीतरघात से चलते हार गए और पार्टी ने उन्हें राजमंत्री बना दिया। उसके बाद आम चुनाव में टिकिट नहीं मिला फिर भी भाजपा प्रत्याशी रमेश खटीक की जीत करेरा से हुई। और जसवंत को कोई मलाल नहीं हुआ। वे सिर्फ भाजपा और अपने नेता सिंधिया के निर्देशों का अक्षरशः पालन करने में लगे लगे ।और उसी के परिणाम स्वरूप सिंधिया ने अपना बीटो पावर उपयोग कर अब अध्यक्ष बना दिया है। और जिस तरह सिंधिया पाने सिपहसालारों पर नजर रखते हैं उसके चलते लाइन से भटकना मुश्किल होता है। और जसवंत जाटव भी सिंधिया के नाम को खराब नहीं करेंगे और पूरी निष्ठा और ईमानदारी से भाजपा कार्यकर्ताओं को साथ लेकर संगठन का कार्य करेंगे। साथ ही इस बात की चर्चा भी निकलकर सामने आ रही है कि जिन समर्पित भाजपा नेताओं को राजू बाथम ने कार्यकारिणी से आउट कर रखा था उनके पुनः संगठन की मुख्यधारा में लौटने की उम्मीद बढ़ गई हैं।

इसलिए अभी सिर्फ घोषणा हुई है और अभी से विधवा विलाप नहीं होना चाहिए। जसवंत को अभी काम करने का समय देना चाहिए बिना काम किए ही किसी के नेतृत्व को नापना ठीक नहीं है। आने वाला समय तय करेगा कि जसवंत की नियुक्ति के असल मायने की हैं

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