चुनाव आयोग के आदेश के बाद आबकारी विभाग में मचा हड़कंप

ग्वालियर। भारत निर्वाचन आयोग के एक नोटिफिकेशन के बाद आबकारी विभाग में हड़कंप मचा हुआ है। नोटिफिकेशन में स्पष्ट उल्लेख है कि 2024 में लोकसभा चुनाव संपन्न होने हैं। इसको लेकर आबकारी विभाग के ऐसे कितने अफसर हैं जो 3 साल से ज्यादा समय से एक ही स्थान पर डटे हुए हैं।सूत्रों से जानकारी मिली है कि मध्य प्रदेश के लगभग 40 जिलों में ही 3 साल से ज्यादा अधिकारी जमे हुए हैं। निर्वाचन आयोग में पुलिस डिपार्टमेंट जैसा रूल-रेगुलेशन आबकारी विभाग के लिए लागू कर दिया है। भारत निर्वाचन आयोग द्वारा हाल ही में लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र आबकारी विभाग को भी शामिल किया गया है। इसमें बताया गया है कि अफसर की पदस्थापना और गाइडलाइन क्या रहेगी इसके बारे में आयोग ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को 30 जून 2024 तक ऐसे अधिकारियों को हटाने के लिए लिखा है। चुनाव आयोग के इस आदेश के बाद मध्य प्रदेश के तकरीबन सभी जिलों में 3 साल से ज्यादा समय से पदस्थ अधिकारियों के होश उड़ गए हैं।

चुनाव आयोग ने मुख्य सचिवों के साथ-साथ राज्यों के डीजीपी से 31 जनवरी 2024 तक एक अनुपालन रिपोर्ट भी पेश करने की बात कही है। आबकारी विभाग के सूत्रों की माने तो मध्य प्रदेश के कईं जिलों में ऐसे अधिकारियों की सूची ज़्यादा है जो 3 साल से ज्यादा समय से विभाग में जमे हुए हैं। यहाँ प्रमुख रूप से भोपाल,जबलपुर,ग्वालिय, इंदौर,मुरैना,रीवा,सतना समेत तीन दर्जन से ज्यादा जिले शामिल है। यह सभी अधिकारी राजनीतिक पहुंच के कारण ही इतने सालों से विभाग में पदस्थ हैं। कई बार इन अधिकारियों का ट्रांसफर डिपार्टमेंट ने अन्यत्र स्थान पर किया लेकिन यह जुगाड़ लगाकर वापस उसी स्थान पर नौकरी कर रहे है।इनमें ग्वालियर चंबल संभाग प्रमुख रूप से शामिल है। आबकारी विभाग इंदौर और ग्वालियर के सूत्र बताते हैं कि विभाग में गाइडलाइन आने के बाद हड़कंप मचा हुआ है। अधिकारी जिलेवार 3 साल या उससे अधिक जमे हुए अधिकारियों की सूची तैयार करवा रहे है।

खास बात यह है कि मध्य प्रदेश के 55 जिलों में से 50 जिलों में ऐसे अधिकारियों की फेरहिश्त लंबी है जिन्हें 3 साल क्या 5 साल से ज्यादा हो चुके हैं। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश शासन को सबसे ज्यादा राजस्व स्टेट जीएसटी, परिवहन विभाग और आबकारी विभाग से ही मिलता है। यद्यपि सूत्र बताते हैं कि आबकारी विभाग रेवेन्यू प्रदान करने में दूसरे नंबर का विभाग है। सरकारें एक्साइज पॉलिसी को कभी भी सख्त नहीं बनती है। इससे प्रत्येक वर्ष राजस्व बढ़कर ही मिलता है। दरअसल चुनाव में आबकारी विभाग का काम सिर्फ सीमाओं पर अवैध शराब का परिवहन और अवैध शराब की फैक्ट्री पर कार्रवाई करने का रहता है । इस कार्रवाई के दौरान आबकारी पुलिस की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी। इस बार भारत निर्वाचन आयोग ने आबकारी विभाग को भी शामिल किया है। यह आदेश ठीक वैसा ही है जैसा राजस्व विभाग पुलिस और अन्य विभागों के लिए होता है।

आयोग ने विभाग को भेजी निर्देश में स्पष्ट कहा है कि आबकारी विभाग की सब इंस्पेक्टर और उससे ऊपर के अधिकारियों को गाइडलाइन के अनुसार उसे जिले से अन्य जिलों में भेजा जाए। वहीं उन अधिकारियों की पदस्थापना उनके गृह जिले में भी नहीं होगी। आबकारी विभाग में इस आदेश के बाद ऐसे अधिकारियों के दिल की धड़कनें तेज हो गई है,जो तीन साल से ज़्यादा एक ही ज़िले में पदस्थ हैं ।निर्वाचन आयोग के इस आदेश के बाद सूत्रों की माने तो सबसे ज्यादा प्रभाव ग्वालियर चंबल-संभाग समेत तीन दर्जन से ज़्यादा जिलों में होना बताया जा रहा है। इनमें से कई अधिकारी तो ऐसे हैं जिनके सगे संबंधी पॉलिटिकल पार्टियों में पदाधिकारी है ।वहीं ऐसे भी अधिकारियों की सूची विभाग बनवा रहा है जिन पर विभागीय जांच चल रही है। आबकारी विभाग के पूर्व अधिकारी नाम न देने की शर्त पर बताते हैं कि निर्वाचन आयोग के इस आदेश के बाद उन अधिकारियों को सबसे ज्यादा समस्या का सामना करना पड़ेगा जो मैनेजमेंट के लिए कुख्यात है।

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