डॉ नरोत्तम मिश्रा पद गया..कद बरकार

डॉ नरोत्तम मिश्रा पद गया..कद बरकार

लगातार छह विधान सभा चुनाव जीतते व पांच बार मंत्री रहने के बाद भाजपा के तेज़तर्रार फायरब्रांड नेता डॉ नरोत्तम मिश्रा इस बार विधानसभा चुनाव हार गए….हार गए या साजिशन हरवा दिए गए यह एक अलग बहस का मुद्दा हो सकता है। लेकिन अंतिम सत्य यही है कि वह चुनाव में पराजित हो गए। डॉ मिश्रा कि हार प्रदेश ही नही देश मे चर्चा का विषय बन गयी। बनती भी क्यों नही, कोई सोच भी नही सकता था कि देश भर में प्रखर राष्ट्रवादी हिन्दू नेता के रूप में पहचान बना चुके,सरकार के संकटमोचन कहे जाने वाले चतुर व फायर ब्रांड राजनीतिज्ञ डॉ मिश्रा चुनाव भी हार सकते है।
लेकिन सच यही है कि वह चुनाव हार गए लेकिन हम यहां बात उनके हार की नही हार के बाद डॉ मिश्रा के हालात की करना चाहते है। देखा जाए तो इस हार के बाद ही दुनिया ने सच मे देखा कि डॉ मिश्रा का कद राजनीति में कितना ऊंचा है।एक हार उनका कद इंच भर भी नही कम कर पाई।
यही कारण रहा कि डॉ मोहन यादव भी मुख्यमंत्री बनते ही सबसे पहले डॉ मिश्रा से मिलने उनके निवास पर पॅहुचे।उसके बाद दोनों उप मुख्यमंत्री श्री जगदीश देवड़ा व श्री राजेन्द्र शुक्ला ने निवास पहुँच कर उनसे भेट की।विधानसभा अध्यक्ष बनाए गए पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने भी डॉ मिश्रा के निवास पहुँच कर बंद कमरे में लगभग एक घण्टे चर्चा की।
उसके बाद मंत्री मंडल का गठन होते ही नव नियुक्त मंत्रियों के बीच जैसे डॉ मिश्रा से मिलने की होड़ सी मच गई। वरिष्ठ नेता व मंत्री बनाए गए कैलाश विजयवर्गीय हो या विजय शाह। तुलसी सिलावट हो राकेश शुक्ला।सब मंत्री पद के शपथ लेने के बाद ही डॉ मिश्रा से मिलने पॅहुचे।शपथ लेने के बाद ढेड दर्जन मंत्री अब तक मिल चुके है। वरिष्ठ विद्यायक गोपाल भार्गव, सुरेन्द्र पटवा,अजय विश्नोई ,संजय पाठक सहित न जाने कितने विद्यायक भी अब तक डॉ मिश्रा के निवास पहुँच कर भेट कर चुके है।
राजनीति में डॉ मिश्रा का बड़ा कद होने की बात इसलिए नही कही गयी थी कि उनका प्रभाव उनके दल में ही हो बल्की विपक्ष भी उनका उतना ही सम्मान करता है।विपक्ष कांग्रेस के भी कई नेता नई सरकार बनने के बाद अब तक उनके निवास पर दस्तक दे चुके है।चाहे वह वरिष्ठ विधायक राम निवास रावत हो या हाल में ही उप नेता प्रतिपक्ष बनाए गए हेमंत कटारे। इनके अलावा भी कई कांग्रेस विधायक डॉ मिश्रा उनसे निवास पर मुलाकात कर चुके है।
कहने का अर्थ यह है कि डॉ मिश्रा का न केवल जलवा बरकार है बल्कि लगता है समय के साथ इसमे इजाफा हो गया है।
चुनाव हारने के बाद भी प्रदेश की राजनीति पहले की तरह ही डॉ मिश्रा के इर्दगिर्द ही घूम रही है। राजनितिक विशेषज्ञ भी मानते है कि चुनाव में मिली एक हार बड़े नेता के कद पर कोई खास असर नही डालती है । चुनाव तो इंदिरा गांधी भी हारी और अटल बिहारी वाजपेयी। लेकिन हार ने इनके कृतित्व व व्यक्तित्व पर कोई असर नही डाला। राजनीति के इतिहास में इनके कद का नेता आज तक कोई नही हो पाया है ।सभी को विश्वास है देर सवेर डॉ मिश्रा सत्ता या संगठन में मजबूत वापसी करेंगे और फिर शक्ति केंद्र के रूप में स्थापित होंगे।
चुनाव में हार के बाद उन्होंने कहा भी था..समुद्र का पानी उतरे तो किनारा खाली देख के घर मत बना लेना..मैं लौट के आऊंगा..
इसमें कोई शक नही कि वह लौटेंगे और मजबूत होकर लौटेंगे। शायद अब इंतज़ार भी इसी का हो रहा है।

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